कैंसर सहित कई बीमारियों के लिए गौ-मूत्र रामबाण.
हिंदू धर्म शास्त्रों में गाय को ‘मां’ के रूप में पूजा जाता है. जर्मन के एक वैज्ञानिक अनुसार गौ-मूत्र सुबह खाली पेट पीने से कैंसर ठीक हो जाता है.
हिंदू धर्म शास्त्रों में गाय को माता कहा गया है. हिंदू धर्म में यह विश्वास है की गाय प्राकृतिक कृपा की प्रतिनिधि है इसलिए इस की पूजा व रक्षा हर हिंदू का धर्म है.
वैदिक मान्यताओं के अनुसार गाय के शारीर में 33 करोड़ देवता वास करते है इसलिए गौ सेवा करने से सभी 33 करोड़ देवता खुश होते है.
गाय एक शुद्धता सरलता, सौम्यता और सात्विकता की मूर्ति है. गौ माता की पीठ में ब्रह्म, गले में विष्णु तथा मुख में रूद्र निवास करते है. मध्यम भाग में सभी देवगण और रोम-रोम में सभी मह्रिषी वास करते है श्री कृष्ण को हम गोपाल कृष्ण गोविन्द कहते है अर्थात गौ के पालनहार.
गौ-माता पृथ्वी, ब्रहृामण और देव की प्रतीक है. गौ रक्षा, गौ संवर्धन हिन्दुओं के आवश्यक कर्त्तव्य माने जाते है. सभी प्रकार दान में गौ-दान सर्वोपरि माना जाता है.
गौ माता की सेवा के वैज्ञानिक आधार-औषधीय गुण
1. गौ-माता का दूध अमृत के सामान है. इनके दूध से दूध घी, माखन से मानव शारीर पुष्ट होता है और बूढी तीव्र होती है.
2. गौ-माता के दूध से चुस्ती, स्फूर्ति एवं सकारात्मकता बनी रहती है.
3. गौ-माता का मूत्र पीने से कैंसर एवं टी.बी जैसी भयंकर बिमारियां दूर होती
गाय एवं गाय के विज्ञान से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले कुछ प्रश्नोत्तर यहाँ दिये गए है| अगर आपके मन में इन प्रश्नों के अलावा भी कोई प्रश्न आए तो आप इस पेज पर कमेंट के रूप में हम से पूछ सकते है| आपके द्वारा पूछे गए अच्छे प्रश्नों को हम यहाँ जोड़ कर सभी के लिए उसका उत्तर उपलब्ध करवाएँगे|
गाय क्या है?
गाय ब्रह्मांड के संचालक सूर्य नारायण की सीधी प्रतिनिधि है| इसका अवतरण पृथ्वी पर इसलिए हुआ है ताकि पृथ्वी की प्रकृति का संतुलन बना रहे| पृथ्वी पर जितनी भी योनियाँ है सबका पालन-पोषण होता रहे| इसे विस्तृत में समझने के लिए ऋगवेद के 28वें अध्याय को पढ़ा जा सकता है|
गौमाता और विदेशी काऊ में अंतर कैसे पहचाने?
गौमाता एवं विदेशी काऊ में अंतर पहचानना बहुत ही सरल है| सबसे पहला अंतर होता है गौमाता का कंधा (अर्थात गौमाता की पीठ पर ऊपर की और उठा हुआ कुबड़ जिसमें सूर्यकेतु नाड़ी होती है), विदेशी काऊ में यह नहीं होता है एवं उसकी पीठ सपाट होती है| दूसरा अंतर होता है गौमाता के गले के नीचे की त्वचा जो बहुत ही झूलती हुई होती है जबकि विदेशी काऊ के गले के नीचे की त्वचा झूलती हुई ना होकर सामान्य एवं कसीली होती है| तीसरा अंतर होता है गौमाता के सिंग जो कि सामान्य से लेकर काफी बड़े आकार के होते है जबकि विदेशी काऊ के सिंग होते ही नहीं है या फिर बहुत छोटे होते है| चौथा अंतर होता है गौमाता कि त्वचा का अर्थात गौमाता कि त्वचा फैली हुई, ढीली एवं अतिसंवेदनशील होती है जबकि विदेशी काऊ की त्वचा काफी संकुचित एवं कम संवेदनशील होती है|
हिंदू धर्म शास्त्रों में गाय को ‘मां’ के रूप में पूजा जाता है. जर्मन के एक वैज्ञानिक अनुसार गौ-मूत्र सुबह खाली पेट पीने से कैंसर ठीक हो जाता है.
हिंदू धर्म शास्त्रों में गाय को माता कहा गया है. हिंदू धर्म में यह विश्वास है की गाय प्राकृतिक कृपा की प्रतिनिधि है इसलिए इस की पूजा व रक्षा हर हिंदू का धर्म है.
वैदिक मान्यताओं के अनुसार गाय के शारीर में 33 करोड़ देवता वास करते है इसलिए गौ सेवा करने से सभी 33 करोड़ देवता खुश होते है.
गाय एक शुद्धता सरलता, सौम्यता और सात्विकता की मूर्ति है. गौ माता की पीठ में ब्रह्म, गले में विष्णु तथा मुख में रूद्र निवास करते है. मध्यम भाग में सभी देवगण और रोम-रोम में सभी मह्रिषी वास करते है श्री कृष्ण को हम गोपाल कृष्ण गोविन्द कहते है अर्थात गौ के पालनहार.
गौ-माता पृथ्वी, ब्रहृामण और देव की प्रतीक है. गौ रक्षा, गौ संवर्धन हिन्दुओं के आवश्यक कर्त्तव्य माने जाते है. सभी प्रकार दान में गौ-दान सर्वोपरि माना जाता है.
गौ माता की सेवा के वैज्ञानिक आधार-औषधीय गुण
1. गौ-माता का दूध अमृत के सामान है. इनके दूध से दूध घी, माखन से मानव शारीर पुष्ट होता है और बूढी तीव्र होती है.
2. गौ-माता के दूध से चुस्ती, स्फूर्ति एवं सकारात्मकता बनी रहती है.
3. गौ-माता का मूत्र पीने से कैंसर एवं टी.बी जैसी भयंकर बिमारियां दूर होती
गाय एवं गाय के विज्ञान से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले कुछ प्रश्नोत्तर यहाँ दिये गए है| अगर आपके मन में इन प्रश्नों के अलावा भी कोई प्रश्न आए तो आप इस पेज पर कमेंट के रूप में हम से पूछ सकते है| आपके द्वारा पूछे गए अच्छे प्रश्नों को हम यहाँ जोड़ कर सभी के लिए उसका उत्तर उपलब्ध करवाएँगे|
गाय क्या है?
गाय ब्रह्मांड के संचालक सूर्य नारायण की सीधी प्रतिनिधि है| इसका अवतरण पृथ्वी पर इसलिए हुआ है ताकि पृथ्वी की प्रकृति का संतुलन बना रहे| पृथ्वी पर जितनी भी योनियाँ है सबका पालन-पोषण होता रहे| इसे विस्तृत में समझने के लिए ऋगवेद के 28वें अध्याय को पढ़ा जा सकता है|
गौमाता और विदेशी काऊ में अंतर कैसे पहचाने?
गौमाता एवं विदेशी काऊ में अंतर पहचानना बहुत ही सरल है| सबसे पहला अंतर होता है गौमाता का कंधा (अर्थात गौमाता की पीठ पर ऊपर की और उठा हुआ कुबड़ जिसमें सूर्यकेतु नाड़ी होती है), विदेशी काऊ में यह नहीं होता है एवं उसकी पीठ सपाट होती है| दूसरा अंतर होता है गौमाता के गले के नीचे की त्वचा जो बहुत ही झूलती हुई होती है जबकि विदेशी काऊ के गले के नीचे की त्वचा झूलती हुई ना होकर सामान्य एवं कसीली होती है| तीसरा अंतर होता है गौमाता के सिंग जो कि सामान्य से लेकर काफी बड़े आकार के होते है जबकि विदेशी काऊ के सिंग होते ही नहीं है या फिर बहुत छोटे होते है| चौथा अंतर होता है गौमाता कि त्वचा का अर्थात गौमाता कि त्वचा फैली हुई, ढीली एवं अतिसंवेदनशील होती है जबकि विदेशी काऊ की त्वचा काफी संकुचित एवं कम संवेदनशील होती है|
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